मानव विकास की अवधारणाएँ, मुद्दे और सिद्धान्त( Concepts, Issues and Principles of Human Development)
बाल विकास क्या है?, विकास क्या है?, विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ, विकास के सिद्धान्त, विकास की विशेषताएं
DEFINE OF DEVELOPMENT |
विकास वैसे तो हर चीज़ का होता है चाहे वह देश का विकास हो या फिर किसी अन्य वस्तु का। लेकिन हम यहाँ जो विकास की बात कर है वह है मानव विकास(human development) की।
वर्तमान समय में बाल-केंद्रित(child-centered) शिक्षा के विकास पर जोर दिया जा रहा है। बालक के विकास में सभी पक्षों―मानसिक, शारीरिक, सांवेगिक, सामाजिक आदि में वृद्धि और विकास करना आवश्यक है।
बाल विकास(Child development):-
CHILD DEVELOPMENT |
Child development अर्थात बालक का विकास। बाल विकास दो शब्दों से मिलकर बना है- बाल तथा विकास। यहां बाल का अर्थ - बच्चा(child) तथा विकास का अर्थ - परिवर्तन(change)। विकास परिवर्तन की ऐसी प्रक्रिया से होता है जिसके अन्तर्गत परिणात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन होते है। Embryo या शिशु में गर्भाधान से लेकर प्रसव तक अनेक प्रकार के परिवर्तन होते है। इस परिवर्तन को भ्रूणावस्था का शारीरिक विकास माना जाता है। शिशु जन्म के बाद कुछ विशिष्ट परिवर्तन होते है। जैसे-गति, भाषा,सामाजिकता आदि।
मनोविज्ञान में विकास का आशय उसके गर्भ में आने से लेकर पूर्ण adult होने की स्थिति प्राप्त होने से है।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक Castle के अनुसार, "विकास समान प्रयत्न से अधिक महत्व का विषय है। विकास का अवलोकन किया जा सकता है एवं किसी सीमा तक इसका मूल्यांकन एवं मापन भी किया जा सकता है।"
विकास क्या है?(What is development?):-
विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक चलती रहती है। विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता बल्कि इसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक परिवर्तन सम्मिलित रहते हैं जो कि गर्भकाल से लेकर मृत्युपर्यंत तक चलती रहती है। अतः प्राणी के भीतर विभिन्न प्रकार के शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों की उत्पत्ति ही विकास है।
"मानव विकास एक निरन्तर एवं क्रमिक विकास की प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा व्यक्ति में मात्रात्मक एवं गुणात्मक वृद्धि होती हैं और नवीन विशेषताएँ एवं योग्यताएँ प्रकट होती है और उत्तरोत्तर उसके व्यवहार में परिवर्तन होता रहता है।"
("Human development is a process of continuous and gradual development by which quantitative and qualitative growth occurs in a person and new features and abilities are revealed and progressively his behavior changes.")
विकास का अर्थ एवं विशेषताएँ(Meaning and definition of development):-
विकास के सिद्धान्त(Theories of development):-
इरिक एच० इरिकसन, जीन पियाजे तथा रॉबर्ट आर० सीयर्स इन तीनों विद्वानों ने विकास के पृथक्-पृथक् पहलुओं― संवेगात्मक, मानसिक तथा सामाजिक विकास के सन्दर्भ में चिन्तन किया है। ये सभी सिद्धान्त बाल विकास के सन्दर्भ को समग्र रूप प्रदान करते हैं। ये सिद्धान्त इस प्रकार हैं―
- मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त(Psychoanalytic theory)
- ज्ञानात्मक सिद्धान्त(Cognitive theory)
- अधिगम सिद्धान्त(Learning theory)
- मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त(Psychoanalytic theory):-
इस मत के प्रतिपादक इरिक एच० इरिकसन हैं। इरिकसन ने अपनी धारणा का विकास फ्रॉयड के सिद्धान्तों पर किया। इरिकसन अपनी बौद्धिकता के प्रति इतना ईमानदार रहे है कि वह कहते है―मैं नए सिद्धान्त का विकास नही कर रहा हूँ।
- यह theory सम्पूर्णता(Entirety) तथा संगठन(Organization) पर बल देता है।
- मानव जीवन में विकास का क्रम होता है।
- वह आधारभूत मानव मूल्यों (basic human values) में विश्वास करता है।
- मानव व्यवहार का संचालन करने वाले तत्त्वों यथा ― शक्ति, चालक, काम-प्रवृत्ति के अस्तित्व पर विश्वास करता है।
- मानव विकास के लिए समाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक वातावरण(social, cultural and ideological environment) का निर्माण अनिवार्य है।
2. ज्ञानात्मक सिद्धान्त(Cognitive theory):-
इस मत के प्रतिपादक जीन पियाजे है। पियाजे केे विचारों पर प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ दर्शन तथा मनोविज्ञान का प्रभाव भी परिलक्षित(reflect) होता है।
यह मानव व्यवहार पर अधिक बल देता है। उन्होनें व्यक्तित्व के विकास में चेतन, अचेतन, पहचान, खेल, संवेग आदि का योग बताया। उनके विचार में व्यक्ति environment में विकसित जरूरतें को पूर्ण करने की प्रक्रिया से ही विकास-पथ पर बढ़ता है। पियाजे के मत का सांराश इस प्रकार है ―
- सभी विकास एक दिशा में होते हैं।
- विकास के सभी पक्ष मानसिक स्तरों पर पाए जाते हैं।
- बालक तथा प्रौढ़ (adult) के behavior में अन्तर आता है
पियाजे ने विकास के सिद्धांत(theory of development) को इन्द्रियगति(sensory motor) संज्ञान की आरम्भिक अवस्था(initial stage of cognition) तथा संज्ञानावस्था(cognitive stage) में बांटा है। आरम्भ के 24 मास(month) में इन्द्रियगति का विकास होता है। इसके बाद ज्ञानात्मक विकास(cognitive development) होता है। इसी में चिंतन(thinking), तर्क(logic) तथा कल्पना(imagination) का विकास होता है।
3. अधिगम सिद्धान्त(Learning theory):-
अधिगम सिद्धान्त बालक की basic जरूरतों पर ध्यान देते है और उनके आधार पर बालको को सीखने की क्षमता के विकास पर बल देते है। इस सिद्धान्त के अनुसार बालक तभी सीखता है जब उसको किसी चीज़ की needs होती हैं। आवश्यकताएँ ही बालको को किसी क्रिया को सीखने के लिए प्रेरित करते हैं। बालक स्तनपान कर सकता है, वस्तु पकड़ता है, खाता है, पीता है, खेलता है, इन सभी activities में उसकी आवश्यकताएँ निहित होती है। बालक के विकास के संबंध में सीयर्स का कहना है―
- विकास के साथ-साथ बालक के सीखने तथा कार्य करने की गति में भी change होता रहता है, जो अनुभवों तथा क्रियाओं (experiences and actions) पर निर्भर होता है।
- बालक में जिज्ञासा तथा इच्छा(curiosity and desire) सामाजिक सम्पर्क के कारण उत्पन्न होती है।
विकास की विशेषताएँ(Characteristics of development):-
जब हम किसी व्यक्ति के विकास की बात करते है तो व्यक्ति के विकास से हमारा यह तात्पर्य है कि व्यक्ति में जैसे-जैसे विकास होता है तो उसमें कार्यक्षमता, परिपक्वता तथा शक्तिग्रहण आदि जैसे गुण विकसित होते हैं। विकास की विशेषताएँ निम्नलिखित है ―
- परिपक्वता का सिद्धान्त(Maturation):-
जब व्यक्ति अपनी आन्तरिक शक्तियों(Internal powers) एवं वातावरण के प्रति कुशलतापूर्वक प्रतिक्रिया(react efficiently) करता है, तब हम यह मान लेते हैं कि वह किन्हीं specific activities को करने में सक्षम अथवा mature हो गया है। Maturation में स्थायित्व(stability) आ जाता है। Maturation के साथ-साथ बालक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। परिवक्वता एवं सीखना या अधिगम(learning), विकास के दो पहलू हैं। इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है क्योंकि परिपक्वता एवं सीखना एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
2. मूल-प्रवृत्ति आयाम(The Instinct Approach):-
विकास के सन्दर्भ में मैक्डूगल ने मूल प्रवृत्यात्मक(Original trend) व्यवहार का विश्लेषण किया है। मैक्डूगल ने नारियों में ममता मूल-प्रवृति बताई है और इस बात पर बल दिया कि उनका विकास इन मूल प्रवृति के आधार पर होता है। यदि मूल-प्रवृति का प्रयोग केवल जटिल व्यवहारों(complex behaviours) के प्रतिमानों(patterns) के लिए होते है और ये प्रतिमान विकास को प्रभावित करते हैं तो हम यह मान सकते हैं कि इनके अभाव में सीखने की क्रिया सम्पन्न नहीं हो सकती।
3.सहज क्रिया आयाम(Natural approach):-
वाटसन का कहना है कि सभी बालक जब जन्म लेते है तब सभी बालक समान होते हैं। उनकी निश्चित शारीरिक रचना(Anatomy) होती है, उन बालकों में कुछ natural activities होती है और तीन संवेग बालक में मौजूद होते है ― प्रेम, भय और क्रोध(Love, fear and anger)। वातावरण के अनुसार बालक इनका use करता है और यही उनकी activities होती हैं। यही छोटी-छोटी natural activities जब बालक करता रहता है तो यह सब क्रिया बालक के विकास की और संकेत(indicate) करती हैं।
Love |
Comments
Post a Comment